भगवान् श्री गणेशजी माता पार्वती तथा भगवान् शिवजी के द्वितीय पुत्र है।डिंक नामक मूषक इनका वाहन है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इनको केतु का देवता भी माना जाता है।भगवान् श्री गणेशजी गणों के स्वामी है।इसलिए इनको गणपति के नाम से भी जाना जाता है।श्री गणपति के सिर हाथी के सिर के समान है इस कारण इन्हे गजानन भी कहा जाता है।
श्री गणेश चालीसा का महत्त्व : -
श्री गणेशजी को प्रसन्न करने के लिए लोग उनकी पसंद की वस्तुओं का भक्तिपूर्वक पूजा में प्रयोग करते है। ताकि गणेशजी प्रसन्न होकर जल्द उनकी मनोकामना पूर्ण करें। भगवान गणेशजी को घी,मोदक,दुर्वा आदि बहुत पसंद होता है।
इनके साथ ही श्री गणेशजी को आसानी से प्रसन्न करने का उपाय श्री गणेश चालीसा है। जिसे आप नित्य जाप करें। श्री गणेश चालीसा का सर्वाधिक महत्त्व यह है कि इस गणेश चालीसा में उनके जन्म, पराक्रम एवं उनकी महिमा का वर्णन किया गया है। इससे हम शिक्षा प्राप्त कर उसे अपने जीवन में उतार सकते है।
श्री गणेश चालीसा का नियमित पाठ करने से घर परिवार में सुख शान्ति तथा समृद्धि बानी रहती है। घर के सभी सदस्यों के मन में आत्मविश्वास की जागृति होती है। इसका नित्य पाठ करनेवाले व्यक्ति को रिद्धि - सिद्धि, बुद्धि तथा ज्ञान विवेक की प्राप्ति होने लगती है।
श्री गणेश चालीसा पाठ के समय इन 6 बातों का ध्यान रखें : -
- गणेशजी का आशीर्वाद प्राप्त करने भगवान् शिव और माता पार्वतीजी का ध्यान अवश्य करें।
- चालीसा का पाठ करते समय हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करें।
- चालीसा पाठ करते समय श्री गणेशजी की मूर्ति पर दुर्वा चढ़ाना न भूले।
- चालीसा का पाठ हमेशा साफ़ सुथरे और धुले कपडे पहन कर ही करें।
- चालीसा का पाठ करते समय मन में किसी प्रकार के बुरे विचार ना आने दें।
- चालीसा जाप के समय प्रसाद के रूप में बूँदी के लड्डू या फिर मोदक ही चढ़ायें।
- श्री गणेश चालीसा पाठ के लिए प्रातःकाल या फिर संध्याकाल का समय सर्वोत्तम माना गया है।
- पूजा स्थान को साफ़ करें, भगवान् गणेशजी की मूर्ति या प्रतिमा साफ़ करें।
- श्री गणेशजी के सन्मुख घी का दीपक जलाएं।
- श्री गणेशजी की पूजा धुप, दीप, पुष्प, मोदक या बूंदी का लड्डू, रोली,मोली,लाल चन्दन और दूर्वा आदि से करें।
- इसके पश्चात श्री गणेशजी की आरती करें।
- अब पूर्व दिशा या फिर उत्तर दिशा में मुँह करके आसन पर बैठ जाए।
- तत्पश्चात शुद्ध मन से श्री गणेश चालीसा का पाठ आरम्भ करें।
जय गणपति सदगुण सदन, कविवर बदन कृपाल ।
विघ्न हरण मंगल करण, जय जय गिरिजालाल ।।
।। चौपाई ।।
जय जय जय गणपति गणराजू । मंगल भरण करण शुभः काजू ।।
जै गजबदन सदन सुखदाता । विश्व विनायका बुद्धि विधाता ।।
वक्र तुण्ड शुची शुण्ड सुहावना । तिलक त्रिपुण्ड भाल मन भावन ।।
राजत मणि मुक्तन उर माला । स्वर्ण मुकुट शिर नयन विशाला ।।
पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ।।
सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ।।
धनि शिव सुवन षडानन भ्राता । गौरी लालन विश्व-विख्याता ।।
ऋद्धि-सिद्धि तव चंवर सुधारे । मुषक वाहन सोहत द्वारे ।।
कहौ जन्म शुभ कथा तुम्हारी । अति शुची पावन मंगलकारी ।।
एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी ।।
भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरी द्विज रूपा ।।
अतिथि जानी के गौरी सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ।।
अति प्रसन्न हवै तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ।।
मिलहि पुत्र तुहि, बुद्धि विशाला । बिना गर्भ धारण यहि काला ।।
गणनायक गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम रूप भगवाना ।।
अस कही अन्तर्धान रूप हवै । पालना पर बालक स्वरूप हवै ।।
बनि शिशु रुदन जबहिं तुम ठाना । लखि मुख सुख नहिं गौरी समाना ।।
सकल मगन, सुखमंगल गावहिं । नाभ ते सुरन, सुमन वर्षावहिं ।।
शम्भु, उमा, बहुदान लुटावहिं । सुर मुनिजन, सुत देखन आवहिं ।।
लखि अति आनन्द मंगल साजा । देखन भी आये शनि राजा ।।
निज अवगुण गुनि शनि मन माहीं । बालक, देखन चाहत नाहीं ।।
गिरिजा कछु मन भेद बढायो । उत्सव मोर, न शनि तुही भायो ।।
कहत लगे शनि, मन सकुचाई । का करिहौ, शिशु मोहि दिखाई ।।
नहिं विश्वास, उमा उर भयऊ । शनि सों बालक देखन कहयऊ ।।
पदतहिं शनि दृग कोण प्रकाशा । बालक सिर उड़ि गयो अकाशा ।।
गिरिजा गिरी विकल हवै धरणी । सो दुःख दशा गयो नहीं वरणी ।।
हाहाकार मच्यौ कैलाशा । शनि कीन्हों लखि सुत को नाशा ।।
तुरत गरुड़ चढ़ि विष्णु सिधायो । काटी चक्र सो गज सिर लाये ।।
बालक के धड़ ऊपर धारयो । प्राण मन्त्र पढ़ि शंकर डारयो ।।
नाम गणेश शम्भु तब कीन्हे । प्रथम पूज्य बुद्धि निधि, वर दीन्हे ।।
बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा । पृथ्वी कर प्रदक्षिणा लीन्हा ।।
चले षडानन, भरमि भुलाई । रचे बैठ तुम बुद्धि उपाई ।।
चरण मातु-पितु के धर लीन्हें । तिनके सात प्रदक्षिण कीन्हें ।।
धनि गणेश कही शिव हिये हरषे । नभ ते सुरन सुमन बहु बरसे ।।
तुम्हरी महिमा बुद्धि बड़ाई । शेष सहसमुख सके न गाई ।।
मैं मतिहीन मलीन दुखारी । करहूं कौन विधि विनय तुम्हारी ।।
भजत रामसुन्दर प्रभुदासा । जग प्रयाग, ककरा, दुर्वासा ।।
अब प्रभु दया दीना पर कीजै । अपनी शक्ति भक्ति कुछ दीजै ।।
।। दोहा ।।
श्री गणेशा यह चालीसा, पाठ करै कर ध्यान ।
नित नव मंगल गृह बसै, लहे जगत सन्मान ।।
सम्बन्ध अपने सहस्त्र दश, ऋषि पंचमी दिनेश ।
पूरण चालीसा भयो, मंगल मूर्ती गणेश ।।
श्री गणेश चालीसा के लाभ : -
- श्री गणेशजी की कृपा से धन, संपत्ति और रिद्धि - सिद्धि की प्राप्ति होती है।
- श्री गणेश चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति के जीवन में खुशियाँ आती है। श्री गणेशजी हमारे जीवन के सारे कष्टों को दूर करते है।
- श्री गणेशजी को विग्नहर्ता कहते है। चालीसा का नियमित पाठ करने से हमारे जीवन के सारे विघ्न, बाधाएं और विपत्तियाँ समाप्त होती है।
- विद्यार्थियों के लिए भी गणेश वंदना बहुत लाभ दायक होती है।
- श्री गणेशजी शत्रुओं का विनाश करते है। अगर आप शत्रुओं से परेशान है तो, श्री गणेश चालीसा का पाठ से लाभ मिलता है।
- श्री गणेश चालीसा एवं उनकी नित्य पूजा से विवाह में आ रही देरी दूर होती है और उनकी कृपा से विवाह के योग बनने लगते है।
- नियमित श्री गणेश चालीसा के पाठ से बुध दोष की ग्रह दशा समाप्त होती है।
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