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कुंजिका स्तोत्र अर्थ के साथ

        


                                                                          
https://meezonsanatan.blogspot.com/2022/09/kunjika-stotra.html
माता दुर्गा देवी

 देवी माहात्म्य के अंतर्गत सिद्ध कुंजिका स्तोत्र अति परम कल्याणकारी स्तोत्र है। इस स्तोत्र को रुद्रयामल तंत्र के गौरी तंत्र भाग में देखा जा सकता है। यह कुंजिका स्तोत्र सम्पूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के बराबर है। 

         इस स्तोत्र के मूल नवाक्षरी मन्त्र है। जैसे - ॐ ऐं ह्रीं क्लिं चामुण्डाये विच्चे। कुंजिका का अर्थ है चाबी अर्थात कुंजिका स्तोत्र। यह स्तोत्र दुर्गा सप्तशती की शक्ति को जागृत करता है, जो भगवान् शंकर के द्वारा गुप्त कर दिया गया है। 

        कुंजिका स्तोत्र के पाठ के पश्चात किसी और जप या पूजा की आवश्यकता नहीं होती। कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से सभी जाप सिद्ध हो जाते है।                            

                                 कुंजिका स्तोत्र   

 शिव उवाच 

                शृणु देवी प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम। 

                येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापःशुभो भवेत्।। 

                न कवचं नार्गलास्तोत्रम कीलकं न रहस्यकम। 

                न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम।।

                कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत। 

                अति गुह्यतरं देवी देवनामपि दुर्लभम।।

                गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वती। 

                मारणं मोहनं वश्यं स्तंभोच्चाटनादिकम। 

                पाठमात्रेण संसिध्येत कुञ्जीकास्तोत्रमुत्तमम।।।।  

                                  अथ मन्त्र 

        ॐ ऐं ह्रीं क्लिं चामुण्डाये विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लिं जुं सः 

        ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल 

        ऐं ह्रीं क्लिं चामुण्डाये विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा।।

                                  इति मन्त्र 

             नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि

             नमः कैटभहारिण्ये नमस्ते महिषार्दिनि ।।।। 

             नमस्ते शुम्भहन्त्रीं च निशुम्भासुरघातिनि । 

             जाग्रतं हि महादेवी जपं सिद्ध कुरुष्व में ।।।।

             ऐंकारी सृष्टिरूपाये ह्रींकारी प्रतिपालिका  

             क्लींकारी कामरूपिण्ये बीजरूपे नमोस्तु ते ।।।। 

             चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी । 

             विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि ।। 

             धां धीं धूँ धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी । 

             क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवी शां शीं शूं में शुभं कुरु ।। 

             हुं हुं हुंकाररूपिण्ये जं जं जं जम्भनादिनी

            भ्रां भ्रीं भ्रुं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ।। 

            अं  कं  चं  टं  तं  पं  यं  शं  वीं  हं  क्षं 

             धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्त कुरु कुरु स्वाहा ।।  

             पां पीं पूं  पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा

             सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धि कुरुष्व में ।।

             इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे

            अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वती ।। 

            यस्तु कुंजिकया देवी हिनां सप्तशती पठेत । 

            न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ।। 

 
[ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्णम ] 
   
  

 अर्थ -

             भगवान शंकर ने पार्वती से कहा - हे देवी ! मैं इस उत्तम कुंजिका स्तोत्र का वर्णन करता हूँ। जिस कुंजिका मंत्र के प्रभाव से ही चण्डी [ दुर्गा ] पाठ का पूर्ण फल प्राप्त होता है। कवच, अर्गला, कीलक और तीनो रहस्य - देवी सूक्त, रात्रि सूक्त प्रथम, मध्यम, उत्तम, चरित्र के ध्यान, न्यास,पूजन आदि जो कि दुर्गा सप्तशती पाठ के लिए अत्यावश्यक है। ये सभी केवल कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से ही दुर्गा सप्तशती पाठ का फल प्राप्त होता है। 

           हे देवी ! यह कुंजिका स्तोत्र अत्यंत गोपनीय एवं देवताओं के लिए भी दुर्लभ है। अतः हे पार्वती ! अपने गुप्तांग के समान इसे गुप्त ही रखना चाहिए। कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से ही मारण,मोहन,वशीकरण, स्तम्भन तथा उच्चाटन आदि सभी कार्य सिद्ध होते है।

 मन्त्र -      ' ॐ ऐं ह्रीं क्लिं चामुण्डाये विच्चे ॐ ग्लौं हुं क्लिं जुं सः 

        ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल 

        ऐं ह्रीं क्लिं चामुण्डाये विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा।। '

कुंजिका स्तोत्र - शिव स्वरूपिणी, मधु - कैटभ नाशिनी महिषासुरघातिनि और शुम्भ - निशुम्भ नामक दैत्य को नष्ट करने वाली आपको नमस्कार है। हे महादेवी ! आप मेरे जप को सिद्ध करें,आप ' ऐं ' रूप से जगत की उत्पत्ति ' ह्रीं ' रूप से पालन ' क्लिं ' रूप से संहार करनेवाली, ' चामुण्डा ' रूप से चण्ड नामक दैत्य का वध करनेवाली, ' ये ' स्वरुप से भक्तों को अभीष्ट वर देने वाली, ' विच्चे ' रूप से अभय प्रदान करने वाली, नवार्ण मन्त्र स्वरुप वाली हे जगदम्बा ! आपको नमस्कार है।धां धीं धूँ स्वरुप धूर्जटी [ शंकर ] की पत्नी, वां वीं वूं स्वरुप वाग [ वाणी ] की अधिश्वरी सरस्वती,क्रां क्रीं क्रूं रूपिणी कालिका,शां शीं शूं स्वरूपिणी शान्ति देवी ! मेरा कल्याण करें। हुं हुं स्वरुप वाली, हुंकार रूपिणी देवी, जं जं जं रूपिणी जम्भनादिनी देवी तथा भ्रां भ्रीं भ्रुं स्वरुप वाली भैरवी, भद्रा तथा भवानी आपको बारम्बार नमस्कार है। ' अं  कं  चं  टं  तं ' से कुरु कुरु स्वाह तक पाठ करें। पां पीं पूं स्वरूपिणी पार्वती,  खां खीं खूं  रूपिणी खेचरी एवं म्लां म्लिं म्लूं मूल - विस्तीर्णरूपिणी कुंजिका देवी को नमस्कार है तथा सां सीं सूं स्वरुप वाली दुर्गा सप्तशती के समस्त मंत्रो की सिद्धि हे देवी ! मुझे प्राप्त हो। 

                 इस कुंजिका स्तोत्र के पाठ मात्र से ही दुर्गा सप्तशती के समस्त मन्त्र सिद्ध होते है। हे पार्वती ! इस गुप्त स्तोत्र का रहस्य नास्तिक अर्थात शास्त्र में अश्रद्धालु जनों के लिए नहीं बताना चाहिए। हे देवी ! जो इस कुंजिका स्तोत्र के पाठ बिना दुर्गा सप्तशती का पाठ करता है, उसे अरण्य [ जंगल ] रोदन के सामान सिद्धि प्राप्त नहीं होती, अर्थात उसका सप्तशती पाठ व्यर्थ होता है।

https://meezonsanatan.blogspot.com/2022/09/kunjika-stotra.html
                 [ इति  शिवपार्वती संवादे कुंजिकास्तोत्रं सम्पूर्ण ]       


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