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श्री दुर्गा चालीसा एवं क्षमा याचना

                                                                              

https://meezonsanatan.blogspot.com/2022/08/SRI-DURGA-CHALISA.html
आदि शक्ति दुर्गा माता


            आदिशक्ति दुर्गा माँ सनातनियों की प्रमुख देवी है। दुर्गा माता को आदिशक्ति, प्रधान प्रकृति, गुणवती योगमाया, बुद्धितत्व की जननी बताया गया है। माता दुर्गा अंधकार और अज्ञानता रूपी राक्षसों से रक्षा करनेवाली कल्याणकारी है। माता दुर्गा के बारें में मान्यता है कि वे शान्ति, समृद्धि तथा धर्म पर आघात करनेवाली राक्षसी शक्तियों का विनाश करती है। 

                                         ।।ध्यान।।

                                महिषासुर  दल घातिनी,

                                रखो हमारी लाज,

                               आन उबारो दुखन से,

                               आन संवारो काज।। 

                               तुम बिन मां कोई नहीं,

                              चले हमारे साथ। 

                              सुत के माथे पर धरो, 

                                     जननी आकर हाथ।। 

                                   

  श्री दुर्गा माता के १०८ नाम : -     

  ॐ सती साध्वी भवप्रीता भवानी ५ भवमोचनी ६ आर्या ७ दुर्गा जया ९ आद्या १० त्रिनेत्रा ११ शूलधारिणी १२ पिनाकधारिणी १३ चित्रा १४ चंद्रघंटा १५ महातपा १६ मन १७ बुद्धि १८ अहंकारा १९ चित्तरूपा २० चिता २१ चिति २२ सर्वमन्त्रमयी २३ सत्ता २४ सत्यानन्दस्वरूपिणी २५ अनंता २६ भाविनी २७ भाव्या २८ भव्य २९ अभव्या ३० सदगति ३१ शाम्भवी ३२ देवमाता ३३ चिन्ता ३४ रत्नप्रिया ३५ सर्वविद्या ३६ दक्षकन्या ३७ दक्ष यज्ञ विनाशिनी ३८ अपर्णा ३९ अनेकवर्णा ४० पाटला ४१ पाटलावंती ४२पट्टाम्बर - परिधाना ४३ कलमंजिररंजिनी ४४ अमेयविक्रमा ४५ क्रूरा ४६ सुन्दरी ४७ सुरसुन्दरी ४८ वनदुर्गा ४९ मातंगी ५० मतंगमुनिपूजिता ५१ ब्राम्ही ५२ माहेश्वरी ५३ एंद्री ५४ कौमारी ५५ वैष्णवी ५६ चामुंडा ५७ वाराही ५८ लक्ष्मी ५९ पुरुषाकृति ६० विमला ६१ उत्कर्षिणि ६२ ज्ञाना ६३ क्रिया ६४ नित्या ६५ बुद्धिदा ६६ बहुला ६७ बहुल प्रेता ६८ सर्ववाहनवाहना ६९ निशुम्भ - शुम्भ हननी ७० महिषासुरमर्दिनी ७१ मधुकैटभहन्त्री ७२ चण्ड - मुण्ड विनाशिनी ७३ सर्वासुरविनाशा ७४ सर्वदानवघातिनी ७५ सर्वशास्त्रमयी ७६ सत्या ७७ अनेकास्त्र - धारिणी ७८ अनेकशस्त्रहस्ता ७९ अनेकशस्त्रधारिणी ८० कुमारी ८१ एक कन्या ८२ कैशोरी ८३ युवती ८४ यति ८५ अप्रौढ़ा ८६ प्रौढ़ा ८७ वृद्ध माता ८८ बलप्रदा ८९ महोदरी ९० मुक्तकेशी ९१ घोररूपा ९२ महाबला ९३ अग्निज्वाला ९४ रौद्रमुखी ९५ कालरात्रि  ९६ तपस्वीनी  ९७ नारायणी ९८ भद्रकाली ९९ विष्णुमता   १०० जलोदरी १०१ शिवदूती १०२ कराली १०३ अनन्ता १०४ परमेश्वरि १०५ कात्यायनी १०६ सावित्री १०७ प्रत्यक्षा १०८ ब्रम्हवादिनी। 

                        ।।श्री दुर्गा चालीसा।।

 नमो नमो दुर्गे सुख करनी। नमो नमो अम्बे दुःख हरनी।।

 निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी।।

शशि ललाट मुख महाविशाला। नेत्र लाल भृकुटि विकराला।।

रूप मातु को अधिक सुहावे। दरश करत जन अति सुख पावे।।

तुम संसार शक्ति ले किना। पालन हेतु अन्न धन दिन।।

अन्नपूर्णा हुई जग पाला। तुम ही आदि सुंदरी बाला।।

प्रलयकाल सब नाशन हारी। तुम गौरी शिवशंकर प्यारी।।

शिव योगी तुम्हरे गुण गावे। ब्रम्हा विष्णु तुम्हे नित ध्यावे।।

रूप सरस्वती को तुम धरा। दे सुबुद्धि कृषि मुनिन उबारा।।

धरयो रूप नरसिंह का अम्बा। परगट भई फाड़कर खम्बा।।

रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।  हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठावो।।

लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं। श्री नारायण अंग समाहीं।।

क्षीरसिन्धु में  करत विलासा। दयासिन्धु दीजै मन आसा।।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी। महिमा अमित न जात बखानी।।

मातंगी धूमावती माता। भुवनेश्वरि बगला सुख दाता।।

श्री भैरव तारा जग तारिणी। छिन भाल भव दुःख निवारिणी।।

केहरि वाहन सोह भवानी। लांगुर वीर चलत अगवानी।।

कर में खप्पर खड्ग विराजै। जाको देख काल डर भाजै।।

सोहे अस्त्र और तिरशूला। जाते उठत शत्रु हिय शुला।।

नगरकोट में तुम्हीं विराजत। तिहुं लोक में डंका बाजत।।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे। रक्तबीज शंखन संहारे।।

महिषासुर नृप अति अभियानी। जेहि अघ भार मही अकुलानी।।

रूप कराल कालिका धारा। सेन सहित तुम तिहि संहारा।।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब। भई सहाय मातु तुम तब तब ।।

अमरपुरी अरु बासव लोका। तब महिमा सब रहे अशोका।।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी। तुम्हे सदा पूजें नर - नारी।।

प्रेम भक्ति से जो यश गावें। दुःख दारिद्र निकट नहीं आवें।।

ध्यावे तुम्हे जो नर मन लाई। जन्म - मरण ताकौ छूटी जाई।।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी। योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी।।

शंकर आचारज तप कीनो। काम अरु क्रोध जीति सब लीना।।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को। काहू काल नहिं सुमिरो तुमको।।

शक्ति रूप को मरम न पायो। शक्ति गई तब मन पछितायो।।

शरणागत हुइ कीर्ति बखानी। जय जय जय जगदम्ब भवानी।।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा। दई शक्ति नहीं किन विलम्बा।।

मोको मातु कष्ट अति घेरो। तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो।।

आशा तृष्णा निपट सतावें। मोह मदादिक सब बिनशावें।।

शत्रु नाश कीजै महरानी। सुमिरौं इकचित तुम्हे भवानी।।

करो कृपा हे मातु दयाला। ऋद्धि - सिद्धि देइ करहु निहाला।।

जब लगि जिऊं दया फल पाऊं। तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं।।

दुर्गा चालीसा जो गावै। सब सुख भोग परमपद पावें।।

देवीरास शरण निज जानी। करहु कृपा जगदम्ब भवानी।।                  

              जब भी आप दुर्गा पूजा या फिर श्री दुर्गा चालीसा पढ़ेंगे तो उसके पश्चात क्षमा याचना करना अति आवश्यक होता है। इसके बिना पूजा का फल नहीं मिलता।                                            

                                    क्षमा याचना

               हे मां ! मेरे द्वारा प्रतिदिन सहस्त्रों अपराध होते है, परन्तु मुझे अपना दास समझकर मेरे उन अपराधों को तुम क्षमा करो। परमेश्वरि ! मैं न तो तुम्हारा आव्हान करना जानता हूँ न विसर्जन। मुझे पूजा विधि भी नहीं आती। हे माँ ! मेरी भूलों को क्षमा करो। हे देवी ! मैं मंत्रहिन्, क्रियाहीन और भक्तिहीन हूँ। हे जगदम्बिके ! मेरे समान कोई पापी नहीं और तुम सा कोई दयालु नहीं, इसलिए जैसा चाहो वैसा करो।  हे परमेश्वरि ! अज्ञान से, भूलसे अथवा मतिभ्र्म के कारण मैंने जो न्यूनता या अधिकता की हो, उसे क्षमा करो और प्रसन्न होओ। सच्चिदानन्दस्वरूपा, जगन्माता कामेश्वरी ! तुम प्रेमपूर्वक मेरी यह पूजा स्वीकार करो और मुझ पर प्रसन्न रहो। मै आपकी संतान हूं। 


 


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