श्री विष्णु |
हिन्दू सनातन धर्म के आधारभूत ग्रंथों में पुराणों के अनुसार विष्णुजी परमेश्वर के तीन मुख्य रूपों में से एक है। हमारे पुराणों में त्रिमूर्ति विष्णुजी को विश्व का पालनहार बताया गया है। मूलतः विष्णुजी और शिवजी तथा ब्रम्हा एक ही है।
विष्णु पुराण के अनुसार भगवान् विष्णु निराकार परब्रम्ह है, जिनको वेदों में ईश्वर कहा गया है। चतुर्भुज विष्णुजी को सबसे निकटतम मूर्त एवं मूर्तब्रम्ह कहा गया है। विष्णुजी का सर्वाधिक वर्णन भागवत एवं विष्णु पुराण में है।
पुराणों के अनुसार विष्णुजी की पत्नी श्री लक्ष्मीजी है। विष्णुजी के पुत्र कामदेव है। उनका निवास क्षीरसागर है। उनका शयन शेषनाग के ऊपर है। उनकी नाभि से कमल उत्पन्न होता है, जिसमे ब्रम्हाजी विराजमान होते है।
विष्णुजी अपने नीचेवाले बाएँ हाथ में कमल, अपने नीचेवाले दाहिने हाथ में गदा, और उपरवाले बाएँ हाथ में शंख और अपने उपरवाले दाहिने हाथ में सुदर्शन चक्र धारण करते है। धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान् विष्णुजी के अनंत स्वरुप और नाम अनंत है।
भगवान् विष्णुजी को एकादशी और गुरुवार का दिन समर्पित है।इन दिनों भगवान विष्णुजी की पूजा करने का बहुत अधिक महत्त्व होता है।भगवान् विष्णुजी की पूजा करने से माँ लक्ष्मी माताजी प्रसन्न हो जाती है।
श्री विष्णु चालीसा पाठ का महत्व : -
श्री विष्णु चालीसा का पाठ करने से सुख - सौभाग्य की प्राप्ति होती है। श्री विष्णुजी की कृपा से सिद्धि - बुद्धि, धन - बल तथा ज्ञान - विवेक की प्राप्ति होती है। भगवान् श्री विष्णुजी के प्रभाव से मनुष्य धनवान बनता है। उसे प्रगति की भी प्राप्ति होती है। वह मनुष्य हर तरह के सुखों का भागिदार बन जाता है, उसे कभी कष्ट नहीं होता। भगवान् श्री विष्णुजी ज्ञान के देवता है। उनकी कृपा प्रसाद से मनुष्य सारी बाधाओं से मुक्त होकर तेजस्वी बन जाता है।
श्री विष्णु चालीसा पाठ करने की विधि : -
- प्रातः जल्द उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर साफ़ पीले रंग के वस्त्र धारण करें।
- श्रीहरि विष्णुजी की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाकर मन ही मन में संकल्प करें।
- मंदिर या पूजाघर में आसन लगा कर बैठ जाएँ और फिर श्री विष्णु चालीसा का पाठ आरम्भ करें।
- चालीसा का पाठ होनेपर, धूपदीप करके भगवान् विष्णुजी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगायें।
- भोग में तुलसी की पत्ती अवश्य डालना चाहिए। तुलसी के बिना भगवान् विष्णुजी की पूजा अधूरी मानी जाती है।
- इसके पश्चात परिवार के सदस्यों में प्रसाद का वितरण करें।
दोहा
विष्णु सुनिए विनय सेवक की चितलाय।
किरत कुछ वर्णन करूँ दीजै ज्ञान बताय।।
।।चौपाई।।
नमो विष्णु भगवान् खरारी, कष्ट नशावन अखिल बिहारी।।
प्रबल जगत में शक्ति तुम्हारी, त्रिभुवन फ़ैल रही उजियारी।।
सुन्दर रूप मनोहर सूरत, सरल स्वभाव मोहनी मूरत।।
तन पर पीताम्बर अति सोहत, बैजंती माला मन मोहत।।
शंख चक्र कर गदा बिराजै, देखत दैत्य असुर दल भाजे।।
सत्य धर्म मद लोभ न गाजे, काम क्रोध मद लोभ न छाजे।।
संतभक्त सज्जन मनरंजन, दनुज असुर दुष्टन दल गंजन।।
सुख उपजाय कष्ट सब भंजन, दोष मिटाये करत जन सज्जन।।
पाप काट भव सिंधु उतारण, कष्ट नाशकर भक्त उबारण।।
करत अनेक रूप प्रभु धारण, केवल आप भक्ति के कारण।।
धरणि धेनु बन तुमहि पुकारा, तब तुम रूप राम का धारा ।।
भार उतार असुर दल मारा, रावण आदिक को संहारा।।
आप वराह रूप बनाया, हिरण्यक्ष को मार गिराया।।
धर मत्स्य तन सिंधु बनाया, चौदह रतनन को निकलाया।।
अमिलख असुरन द्वन्द मचाया, रूप मोहनी आप दिखाया।।
देवन को अमृत पान कराया, असुरन को छवि से बहलाया।।
कूर्म रूप धर सिंधु मझाया, मन्द्राचल गिरी तुरत उठाया।।
शंकर का तुम फन्द छुड़ाया, भस्मासुर को रूप दिखाया।।
वेदन को जब असुर डुबाया, कर प्रबंध उन्हें ढुँढवाया।।
मोहित बनकर खलहि नचाया, उसही कर से भस्म कराया।।
असुर जलंधर अति बलदाई, शंकर से उन कीन्ह लड़ाई।।
हार पार शिव सकल बनाई, किन सती से छल खल जाई।।
सुमिरन किन तुम्हे शिवरानी, बतलाई सब विपत कहानी।।
तब तुम बने मुनीश्वर ज्ञानी, वृन्दा की सब सुरति भुलानी।।
देखत तीन दनुज शैतानी, वृन्दा आय तुम्हे लपटानी।।
हो स्पर्श धर्म क्षति मानी, हना असुर उर शिव शैतानी।।
तुमने ध्रुव प्रहलाद उबारे, हिरणाकुश आदिक खल मारे।।
गणिका और अजामिल तारे, बहुत भक्त भव सिन्धु उतारे।।
हरहु सकल संताप हमारे, कृपा करहु हरी सिरजन हारे।।
देखहुं मै निज दरश तुम्हारे, दिन बन्धु भक्तन हितकारे।।
चहत आपका सेवक दर्शन, करहु हरी सिरजन हारे।।
जानूं नहीं योग्य जप पूजन, होय यज्ञ स्तुति अनुमोदन।।
शीलदया संतोष सुलक्षण, विदित नहीं व्रतबोध विलक्षण।।
करहुं आपका किस विधि पूजन, कुमति विलोक होत दुःख भीषण।।
करहुं प्रणाम कौन विधिसुमिरण, कौन भांति मै करहु समर्पण।।
सुर मुनि करत सदा सेवकाई, हर्षित रहत परम गति पाई।।
दीन दुखिन पर सदा सहाई, निज जन जान लेव अपनाई।।
पाप दोष संताप नाशाओं, भव - बंधन से मुक्त कराओ।।
सुख संपत्ति दे सुख उपजाओ, निज चरनन का दास बनाओ।।
निगम सदा ये विनय सुनावें, पढ़ें सुनै सो जन सुख पावे।।
श्री विष्णु चालीसा पाठ के लाभ : -
- विष्णु चालीसा का पाठ करने से सुख, सौभाग्य,समृद्धि के साथ - साथ धन धान्य की प्राप्ति होती है।
- विष्णु चालीसा का पाठ करने से हमारे सभी कष्टों व समस्याओं का निवारण होता है।
- विष्णु चालीसा का पाठ करने से हमें, अपने भीतर सकारात्मक मानसिक शक्ति की उत्पत्ति होती है ,
- गुरूवार के दिन विष्णु चालीसा का पाठ करने से हमें मोक्ष मिलता है।
- विष्णु चालीसा का पाठ करने से हमें, शक्ति और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
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