देवों में प्रथम कहे जानेवाले भगवान् शिव स्वयंभू है इसका अर्थ यह होता है कि वे मानव शरीर से पैदा नहीं हुए है। जब विश्व में कुछ नहीं था तो भगवान् शिव थे और सब कुछ नष्ट हो जाने के पश्चात भी उनका अस्तित्व बना रहेगा।
त्रिदेवों में से एक आदिदेव भगवान् शिव को भोलेनाथ, महादेव, शंकर, महेश आदि कई नामों से जाना जाता है। भगवान् शिवजी की अर्धांगिनी पार्वती [ शक्ति ] है। भगवान् शिवजी की पूजा शिवलिंग या मूर्ति दोनों ही रूपों में की जाती है।
भोलेनाथ के गले में नागदेवता विराजते है एवं हाथों में डमरू और त्रिशूल लिए होते है। उनका वास कैलाश पर्वत पर माना जाता है।
त्रिदेवों में भगवान् शिवजी को संहार के देवता माना गया है। शिवजी अनादि तथा सृष्टि प्रक्रिया के आदि स्रोत है और यह काल महाकाल ही ज्योतिष शास्त्र के आधार है।
श्री शिवजी के कुछ प्रचलित नाम इस प्रकार है ---- महाकाल, आदिदेव, किरात, शंकर, चंद्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय, त्रिंबक, महेश, विश्वेश, महारुद्र, विषधर, नीलकंठ, महाशिव, उमापति, कालभैरव, भूतनाथ और शशिभूषण।
श्री शिव चालीसा पढ़ने का महत्व : -
श्री शिव चालीसा का पाठ कैसे करें : -
- प्रातः जल्दी उठकर स्नानादि करने के पश्चात साफ़ - सुथरे कपडे पहने।
- अपना मुख पूर्व दिशा में रखे और साफ़ शुद्ध आसन पर बैठ जाय।
- पूजा में धुप - दीप सफ़ेद चन्दन की माला और 5 सफ़ेद फूल भी रखें। प्रसाद के लिए मिश्री रखें।
- पाठ आरम्भ करने से पहले गाय के घी का दीपक जलाएं और एक लोटे में शुद्ध जल भरकर रखें।
- भगवान् शिवजी के शिव चालीसा का तीन बार पाठ करें।
- शिव चालीसा का पाठ ऊँची आवाज़ में करें, पाठ सुनने वाले लोगों को भी इसका लाभ मिलेगा।
- श्री शिव चालीसा का पाठ पूर्ण भक्ति भाव से करें।
- पाठ पूरा हो जाने पर लोटे का जल सारे घर में छिड़क दे, उसी में का थोड़ा सा जल स्वयं पीले।
- मिश्री प्रसाद के रूप में खायें और बालकों में बाँट दे।
श्री शिव चालीसा
।। दोहा।।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यदास तुम, देहु अभय वरदान।।
।। चौपाई।।
जय गिरिजा पति दिन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला ।।
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के ।।
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए ।।
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे ।।
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी ।।
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी ।।
नंदी गणेश सोहे तहँ कैसे। सागर मध्य कमल है जैसे ।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कही जात न काऊ ।।
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुःख प्रभु आप निवारा ।।
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिली तुमहि जुहारी।।
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महं मारी गिरायउ ।।
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा ।।
त्रिपुरासुन सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई ।।
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ।।
दानिन महँ तुम सम कोउ नाही। सेवक स्तुति करात सदाहीं ।।
वेद माहि महिमा तुम गाई।अकथ अनादि भेद नहीं पाई।।
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला ।।
किन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकंठ तब नाम कहाई ।।
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा ।।
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ।।
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई ।।
कठिन भक्ति देखि प्रभु शंकर। भय प्रसन्न दिए इच्छित वर ।।
जय जय जय अनंत अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी।।
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ।।
त्राराहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो ।।
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो ।।
स्वामी एक है आस तुम्हारी।आय हरहु मम संकट भारी।।
धन निर्धन को देत सदा हीं।जो कोई जांचे सो फल पाहीं।।
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ।।
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन ।।
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं ।।
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ।।
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई ।।
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी ।।
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ।।
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे ।।
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा ।।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ।।
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे ।।
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी ।।
॥ दोहा ॥
नित्त नेम उठि प्रातः ही,पाठ करो चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना,पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसिर छठि हेमन्त ॠतु,संवत चौसठ जान ।
स्तुति चालीसा शिवहि,पूर्ण कीन कल्याण ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा॥
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