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गणेशजी की कथा एवं मंत्र

                                                                             

https://meezonsanatan.blogspot.com/2022/08/GANESHJI-KI-%20KATHA.html


          शिवपुराण  के अनुसार भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति भगवान गणेशजी का जन्म हुआ था। अपने माता-पिता की परिक्रमा लगाने के कारण शिव-पार्वती ने उन्हें विश्‍व में सर्वप्रथम पूजे जाने का वरदान दिया था।

         गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।
चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है। 

   विवाह : -
          शास्त्रों के अनुसार गणेश जी का विवाह भी हुआ था इनकी दो पत्नियां हैं। [२ ] जिनका नाम रिद्धि और सिद्धि है तथा इनसे गणेश जी को दो पुत्र और एक पुत्री हैं जिनका नाम शुभ और लाभ नाम बताया जाता है.[२] यही कारण है कि शुभ और लाभ ये दो शब्द आपको अक्सर उनकी मूर्ति के साथ दिखाई देते हैं तथा ये सभी जन्म और मृत्यु में आते है, गणेश जी की पूजा करने से केवल सिद्धियाँ प्राप्त होती है लेकिन इनकी भक्ति से पूर्ण मोक्ष संभव नहीं है।[3] गणेश जी के इन दो पुत्रों के अलावा एक पुत्री भी हैं वे संतोषी माता के नाम से विख्यात हैं।

गणेशजी के माता -पिता तथा भाई बहन : -

 गणेशजी के पिता- भगवान शंकर, माता-भगवती पार्वती, भाई- श्री कार्तिकेय, अय्यप्पा (बड़े भाई), बहन- अशोकसुन्दरी , मनसा देवी , देवी ज्योति ( बड़ी बहन ),  पत्नियाँ - दो (१) ऋद्धि (२) सिद्धि।

  गणेशजी के पुत्र और पुत्री : -
    पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ,  पुत्री - संतोषी माता। 

प्रिय भोग (मिष्ठान्न): - मोदक, लड्डू, प्रिय पुष्प- लाल रंग के, प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्र, अधिपति- जल तत्व के, मुख्य अस्त्र - परशु , रस्सी, वाहन - मूषक, प्रिय वस्त्र - हरा और लाल।
गणेशजी का मंत्र : -

                                      ''  ॐ गं गणपतये नमः ''

 
             यदि आपके जीवन में ढेर सारी परेशानियां हैं और आप उन सब समस्याओं से छुटकारा चाहते हैं तो आप उपरोक्त मंत्र का जाप करें। भगवान गणेश का यह मंत्र इतना चमत्कारी है कि इसके जाप से जीवन में आने वाली सभी बाधाएं और परेशानियां दूर होती हैं। इस मंत्र के जाप से भक्तों जल्द ही शुभ फल प्राप्त होगा। 

गणेशजी की कथा : -

                                                                                     
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               एक मालिन थी, जो अपने बहु और बेटे को बहुत कष्ट पहुंचाया करती थी। एक दिन उसके बहु और बेटा दोनों उसके व्यवहार से दुखी होकर घर से भूखे निकल पड़े तथा नगर से बाहर एक गणेशजी का मंदिर था वहाँ चले गए। मंदिर में आनेवाले भक्तों ने उन्हें प्रसाद दिया जिससे उनकी भूख शांत हो गयी।          

                                              

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              वे वहीं छोटी सी झोपड़ी बनाकर रहने लग गए। वे दोनों भक्तों को पुष्प और दूर्वा लाकर दे दिया करते थे और उसके बदले उनको कुछ पैसे मिल जाते, जिससे उनका खाने - पीने का निर्वाह हो जाता था। बाकी समय में मन लगाकर गणेशजी की पूजा करते तथा उनके नामों का गुणगान करते रहते थे। 

              इसी तरह दिन कटते रहे तत्पश्चात वहां उन्होंने जमा हुए पैसों से एक छोटी सी दूकान लगा दी। इस कारण उन्हें आशा से अधिक लाभ होने लगा। उसके बाद उनका भाग्य चमका और उन्होंने एक बड़ी दूकान करके कुछ जमीन खरीद ली और उसमे एक सुन्दर घर बनाकर उसमे रहने लगे और भगवान् गणपतिजी की कृपा से उस दंपत्ति को इतना लाभ हुआ की उन्हें शहर के बड़े लोगों में गिना जाने लगा। 

             एक दिन वहाँ का राजा अपनी रानी और राजकुमारी के साथ गणेशजी के पूजन के लिए उस मंदिर में आया। उसने विधि - विधान के साथ पूजन करने के पश्चात सबको प्रसाद दिया, जिस समय वह माली राजा से प्रसाद ले रहा था तब राजकुमारी की दृष्टी उस पर पड़ी और उसी समय मोहित हो जाने के कारण वह मूर्छित हो गयी। 

              राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने उसे बहुत समझाया परन्तु राजकुमारी ने कहा कि सनातन धर्म के अनुसार जो कन्या अपने मन से किसी को वर लेती है तो वही उसका पति हो जाता है। अंत में इस माली को छोड़कर अन्य के साथ कदापि विवाह न करुँगी। 

              राजकुमारी का यह हठ देखकर विवश होते हुए राजा को अपनी पुत्री का विवाह उसके साथ करना स्वीकार करना पड़ा और कुछ दिनों के बाद शुभ मुहूर्त में उसका विवाह उसके साथ करते हुए बहुत सा दान देकर विदा किया। वह कल का निर्धन व्यक्ति भगवान् गणेशजी की कृपा से नगर में सबसे प्रतिष्ठित लोगों में गिना जाने लगा। मालिन के गर्भ से उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र प्राप्त होने पर उसने सारे शहर को निमंत्रित करके भोज दिया और निर्धनों को द्रव्य देकर संतुष्ट किया। 

                 जिस समय वह निर्धनों को भोजन दे रहा था, तो उसकी माता भी कहीं से भीख माँगती हुई उसके द्वार पर आ गई उस समय उसका ऐसा बुरा हाल था कि जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। इसके बाद ज्यों ही उसने भिक्षा के लिए हाथ पसारा त्यों ही उसकी बहु मालिन ने उसे अपने आँगन में बुरी अवस्था में देखने के पश्चात भी पहचान लिया और दासियों को आज्ञा दी कि वे उस बुढ़िया को भली प्रकार स्नान कराकर पहनने के लिए सुन्दर वस्त्र दे और खाने के लिए स्वादिष्ट भोजनो का प्रबंधन करें। 

                जब बुढ़िया स्नान कर सुन्दर वस्त्र पहनने के पश्चात भोजन कर चुकी तो मालिन ने उसके पैरों को छूते हुए अपना लड़का उसके चरणों में गिरा दिया, तब वह यह दृश्य देखकर पहले तो बड़ी चकित हुई परन्तु जब उसे यह भली प्रकार ज्ञात हो गया कि वे और कोई न होकर उसी के बहु - बेटा है तो उसके आनंद का कोई ठिकाना न रहा। साथ साथ उसे बहुत लज्जा भी हुई और अपने कुकृत्यों की बहु बेटे से शमा मांगी। बुढ़िया को इस प्रकार गिड़गिड़ा कर क्षमा माँगते हुए देखकर उन दोनों ने हाथ जोड़ पैरों में पड़ते हुए कहा -- माँ ! आप ऐसा करके हमें पाप गर्त में मत डालिये। क्योंकि माता - पिता स्वर्ग समान होते है। अतः आपकी सेवा में ही हमें सुख है। जो कुछ यह वैभव मिला है यह सब आपकी ही कृपा का ही फल है। 

                जब लोगों को इस कहानी का पता चला तो वे भी सब उनकी बड़ाई करते हुए गणेशजी की पूजा में श्रद्धापूर्वक लग गये ,अतः भगवान् गणेशजी से प्रार्थना है कि वह बुढ़ियाँ और उसे बहु बेटों को मिलने वाला दुःख किसी को न देकर जो उनको अंत में सुख मिला वैसा सुख सभी प्राणियों को प्रदान करें।                  

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                                            I I   श्री गणेशाय नमः II

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