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देवी महागौरी |
पौराणिक कथा के अनुसार माता महागौरीजी ने देवी पार्वती रूप में भगवान् शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत कठोर तपस्या की थी, महागौरी का वर्ण गौर है । इस गौरता की उपमा शंख,चंद्र तथा कुंद के फूल से की गई है । माता महागौरी की आयु आठ वर्ष की मानी गई है। माता महागौरी के समस्त वस्त्र एवं आभूषण सभी श्वेत है ।
देवी के नवरात्रि में माता महागौरी का आठवाँ स्वरुप है । इस दिन महागौरी की शक्ति की पूजा की जाती है। इनकी चार भुजाएं है और वाहन वृषभ है इसीलिए इन्हे वृषारूढ़ा भी कहा जाता है।
महागौरी की कथा : -
जब माता उमा वन में घोर तपस्या कर रही थी, तभी एक सिंह वन में भूखा घूम रहा था । वह अपने लिए भोजन की तलाश कर रहा था । वह सिंह घूमते - घूमते जहाँ माता उमा तपस्या कर रही थी वहां पहुँच जाता है । माता उमा को देखकर उस सिंह की भूख बढ़ जाती है । परन्तु, वह सिंह देवी के तपस्या से उठने की प्रतीक्षा करते हुए वहीं बैठ जाता है ।
देवी माता के उठने की प्रतीक्षा में वह सिंह काफी कमजोर हो चूका था । जब माता तपस्या से उठी तो, उस सिंह की दशा देखकर माता को सिंह की बहुत दया आ गई और माता ने उसे अपनी सवारी बना लिया । इसका कारण यह था कि उस सिंह ने भी एक प्रकार से तपस्या ही की थी । इसी कारण माता देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह माने जाते है ।
देवी के नवरात्रि में माता महागौरी का आठवाँ स्वरुप है । इस दिन महागौरी की शक्ति की पूजा की जाती है । इनकी चार भुजाएं है और वाहन वृषभ है, इसीलिए इन्हे वृषारूढ़ा भी कहा जाता है ।
महागौरी का मन्त्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ गौरी रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
रामायण में उल्लेख किया गया है कि देवी सीता माता ने माँ गौरी का पूजन कर अपना श्रीराम के रूप में मनचाहा वर पाया था । माँ जानकी देवी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए स्तुति पाठ किया था ।
जिन कन्याओं के विवाह में आ रही रूकावटों को दूर करने के लिए '' स्वयंवर पार्वती मन्त्र '' का जाप करना चाहिए। सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार यह विशिष्ठ मन्त्र माता पार्वतीजी को ऋषि दुर्वासा से प्राप्त हुआ था। इसी मन्त्र से माता पार्वती ने भगवान् शंकरजी को पति के रूप में प्राप्त किया था।
।। स्वयंवर पार्वती मन्त्र ।।
ॐ ह्रीं योगिनी योगिनी योगेश्वरी योग भयंकरी
सकल स्थावर जंगमस्य मुख ह्रदय मम वशं
आकर्षय आकर्षय नमः।।
मन्त्र पढ़ने की विधि : -
जिन कन्याओं के विवाह में विलम्ब आ रहा है उन्हें पूजन से पहले अपनी मनोकामना का संकल्प जरूर करना चाहिए। हाथों में जल, फूल और अक्षत लेकर जिस दिन पूजा कर रहे है उसकी तिथि, वर्ष, वार और जगह का नाम, अपना नाम और अपने गोत्र का नाम लेकर अपनी मनोकामना का स्मरण करें। संकल्प के पश्चात जल को जमीन पर छोड़ दे।
।। स्तुति ।।
जय जय गिरिराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी ।।
जय गजबदन षडानन माता। जगत जननि दामिनी दुति गाता ।।
देवी पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहि सुखारे ।।
मोर मनोरथ जानहु नीके। बसहु सदा उर पुर सबही के ।।
कीन्हेऊं प्रगट न कारन तेहि।अस कही चरन गहे बै देहिं।।
बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियं प्रसाद सर धरेऊ। बोली गौरी हरणु हीयं भरेऊ।।
सुन सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सूचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहिं सो बरु सहज सुन्दर सांवरो ।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरों।।
एहि भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हियं हरषी अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
इस स्तुति को सोमवार और शुक्रवार को कुँवारी कन्याएं स्न्नानादी के पश्चात गौरी माता का पूजन कर इस स्तुति का पाठ करेंगी तो उन्हें माता गौरी का वरदान प्राप्त होगा ।
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