विघ्नहर्ता महा गणपति |
गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता आ रहा है। इस वर्ष गणेश चतुर्थी का उत्सव 31 अगस्त बुधवार से मनाया जाएगा। श्री गणपति की स्थापना का शुभ मुहर्त रात 11 बजकर 05 से 01 बजकर 38 मिनिट तक रहेगा। दस दिनों तक चलनेवाले गणेशोत्सव का समापन 09 सितम्बर शुक्रवार को अनंत चतुर्दशी के दिन गणपतिजी का विसर्जन होगा।
इस उत्सव में लोग अपने घरों के अतिरिक्त बड़ी संख्या में सार्वजनिक श्री गणपति की स्थापना करते है। श्री गणेशजी की पूजा के समय आरती का बहुत बड़ा महत्त्व होता है। आरती के बिना श्री गणपति की पूजा अधूरी मानी जाती है। कुछ प्रचलित आरतियों को यहां पर आप देख सकते है।
' जय गणेश देवा ' आरती [ 1 ]
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदन्त दयावंत, चार भुजाधारी।।
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी।।
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा।।
लड्डुअन का भोग लगे,संत करे सेवा।।
अंधे को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
' शेंदूर लाल चढ़ायो ' आरती [ 2 ]
शेंदूर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुख को।दोंदिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को ।।
हाथ लिए गुडलड्डू सांई सुरवर को। महिमा कहे न जाय लागत हूं पादको।।1।।
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता। धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता।। धृ।।
अष्टौ सिद्धि दासी संकट को बैरी। विघ्नविनाशक मंगल मूरत अधिकारी।
कोटि सूरज प्रकाश ऐसी छबि तेरी। गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारी।।2 ।।
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता। धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता।।
भावभगत से कोई शरणागत आवे। संतत संपत सबही भरपूर पावे।
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे। गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे।।3।।
जय जय श्री गणराज विद्या सुखदाता। धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता।।
सुखकर्ता दुःखहर्ता मराठी आरती [३]
सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची ।। नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।।
सर्वांगी सुन्दर ऊटी शेंदुराची।। कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची ।। १।।
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।।दर्शनमात्रे मनकामना पुरती।।धृ।।
रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा। चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा।।
हीरेजड़ित मुगुट शोभतो बरा।। रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया।।जय।।
लम्बोदर पीताम्बर फणिवरबंधना।।सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना।।
दास रामाचा वाट पाहे सदना।। संकष्टी पावावें निर्वाणी रक्षावे सुरवंदना।। जय देव जय देव जय मंगलमूर्ति।।दर्शन।।३।।
' गजानना श्रीगणराया ' आरती [4 ]
गजानना श्रीगणराया। आधी वंदु तुज मोरया।।
मंगलमूर्ति श्रीगणराया। आधी वंदु तुज मोरया।। १।।
सिंदूरचर्चित धवळे अंग। चंदन उटी खुलवी रंग।
बघता मानस होते दंग। जीव जडला चरणी तुझिया।।
गौरीतनया भालचंद्रा। देवा कृपेच्या तूं समुद्रा।।
वरदविनायक करुणागारा।अवघी विघ्नें नेसी विलया।।3।।
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